रवि का बचपन अपनी माँ के साथ ही बीता। उसकी माँ शकुंतला ने उसके पिता के देहांत के बाद अपने सारे सपने छोड़कर अपनी पूरी जिंदगी रवि के पालन-पोषण में समर्पित कर दी थी। अकेले ही अपने बेटे की परवरिश करने का जिम्मा उठाया और हर मुश्किल का सामना किया। वह रोज सुबह से शाम तक खेतों में काम करतीं, दूसरों के घरों में बर्तन धोतीं, ताकि रवि को किसी चीज की कमी न हो।

रवि और उसकी माँ का रिश्ता बहुत गहरा था। वह अपने बेटे को पढ़ा-लिखा कर बड़ा आदमी बनते देखना चाहती थी। रवि भी अपनी माँ का बहुत ख्याल रखता था। वह भी जानता था कि उसकी माँ ने उसके लिए कितना त्याग किया है। जब रवि की पढ़ाई के लिए उसे शहर भेजने की बात आई, तो उसकी माँ ने अपनी छोटी सी जमीन तक बेच दी, ताकि रवि को किसी भी चीज की कमी न हो। रवि भी मन लगाकर पढ़ाई करने लगा और धीरे-धीरे अपने नए जीवन में रम गया।

शहर में रहते हुए रवि का अपनी माँ से संपर्क सिर्फ चिट्ठियों के माध्यम से ही हो पाता था। उसकी माँ हर महीने उसे एक चिट्ठी लिखतीं। हर चिट्ठी में अपने हाल-चाल के साथ वह रवि के लिए अपनी दुआएं भेजतीं और उसे यह भी याद दिलातीं कि वह अपनी पढ़ाई पर ध्यान दे और अपने स्वास्थ्य का ख्याल रखे। वह हर चिट्ठी के अंत में लिखतीं, "माँ की आखिरी चिट्ठी"

रवि को यह बात थोड़ी अजीब लगती थी कि माँ हर चिट्ठी में “माँ की आखिरी चिट्ठी” क्यों लिखती हैं। उसने कभी इस बात पर ध्यान नहीं दिया। शहर में पढ़ाई करते हुए उसे दोस्तों का एक नया सर्कल मिल गया। उसकी दिनचर्या बदलने लगी। पढ़ाई के साथ-साथ वह शहर की रंगीनियों में खोता चला गया। माँ की चिट्ठियाँ समय पर आती रहीं, पर रवि का जवाब धीरे-धीरे कम होने लगा। कभी वह व्यस्त होने का बहाना बनाता, तो कभी थकान का। माँ की चिट्ठियों का जवाब देना उसे धीरे-धीरे अनावश्यक लगने लगा था।

समय बीतता गया। अब रवि की पढ़ाई पूरी होने वाली थी, और उसे एक बड़ी कंपनी में नौकरी भी मिल गई थी। वह अब बहुत खुश था और अपने नए जीवन की शुरुआत के सपने देखने लगा। माँ के पत्र उसके पास आते थे, पर वह उन्हें बिना पढ़े ही एक तरफ रख देता था। उसे ऐसा लगता था कि माँ का गाँव में होना उसकी जिंदगी का वह हिस्सा था, जो अब गुज़र चुका है। उसे इस बात का एहसास ही नहीं हुआ कि यह उसकी माँ के साथ उसके रिश्ते को कमजोर बना रहा था।

एक दिन जब वह अपने कमरे में बैठा काम कर रहा था, तो उसे गाँव से एक अनजान चिट्ठी मिली। यह पत्र उसके एक पड़ोसी ने लिखा था। पत्र में लिखा था कि उसकी माँ शकुंतला अब इस दुनिया में नहीं रही। रवि को यह पढ़कर यकीन ही नहीं हुआ। उसे ऐसा लगा जैसे किसी ने उसके दिल को चीर दिया हो। उसकी आँखों में आँसू आ गए और उसे खुद पर गुस्सा आने लगा। उसने तुरंत गाँव लौटने का फैसला किया।

गाँव पहुंचकर उसने अपनी माँ की आखिरी निशानियों को अपने सीने से लगा लिया। उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे। उसे अपनी माँ की यादें और उनकी बातें तड़पा रही थीं। जब वह माँ के पुराने कमरे में गया, तो वहाँ एक डिब्बा रखा मिला जिसमें माँ की सारी चिट्ठियाँ रखी थीं। हर चिट्ठी के अंत में वही शब्द थे – "माँ की आखिरी चिट्ठी"

रवि ने उस पहली चिट्ठी को उठाया और पढ़ना शुरू किया। माँ ने लिखा था: “प्यारे बेटे रवि, जब यह चिट्ठी तुम्हारे पास पहुंचेगी, मैं यकीन करती हूँ कि तुम अच्छी तरह पढ़ाई कर रहे होगे। मेरी दुआएँ हमेशा तुम्हारे साथ हैं। इस चिट्ठी को ‘माँ की आखिरी चिट्ठी’ समझो, क्योंकि पता नहीं कल क्या हो। बस मेरा यही कहना है कि तुम हमेशा खुश रहो और अपनी माँ को कभी मत भूलना। प्यार, माँ।”

रवि की आँखों से आँसू बहने लगे। उसने समझा कि माँ हमेशा हर चिट्ठी को "माँ की आखिरी चिट्ठी" कहकर भेजती थीं ताकि अगर वह उन्हें कभी न पढ़ पाए, तो भी उनकी दुआएं उसके साथ बनी रहें। उसने सभी चिट्ठियाँ एक-एक करके पढ़नी शुरू कीं। हर चिट्ठी में माँ का प्यार, चिंता, और उसकी भलाई के लिए दुआएं भरी थीं।

एक चिट्ठी में माँ ने लिखा था: "रवि बेटा, मैं जानती हूँ कि तुम बड़े होकर बहुत नाम कमाओगे। जब तुम कामयाब हो जाओगे, तो मुझे अपना हिस्सा मानना। मुझे याद रखना और अपना ध्यान रखना। माँ की आखिरी चिट्ठी पढ़ने के बाद मैं बस तुमसे यही दुआ करती हूँ कि तुम हमेशा खुश रहो।"

रवि को एहसास हुआ कि उसने माँ को वह सम्मान नहीं दिया, जिसकी वह हकदार थीं। उसने उन्हें अकेला छोड़ दिया और उनकी मेहनत को नजरअंदाज कर दिया। अब उसकी माँ नहीं थीं, लेकिन उनकी लिखी हर एक चिट्ठी उसकी जिंदगी की सबसे कीमती चीज बन गई थी। "माँ की आखिरी चिट्ठी" अब उसकी जिंदगी की सबसे महत्वपूर्ण चीज बन गई थी, क्योंकि वह अब उन चिट्ठियों में अपनी माँ की आवाज़ सुन सकता था।

उसने खुद से वादा किया कि वह अपनी माँ की इच्छाओं को पूरा करेगा और उनकी यादों को हमेशा अपने दिल में संजोकर रखेगा। वह जानता था कि अब भले ही उसकी माँ उसके साथ नहीं हैं, पर उनकी दुआएं हमेशा उसके साथ रहेंगी।

रवि अब हर दिन एक चिट्ठी को पढ़ता और माँ के दिए संस्कारों को अपने जीवन में उतारता। उसने अपनी माँ की आखिरी इच्छा को पूरा करने की ठानी – अपने गाँव के बच्चों के लिए एक स्कूल खोलना, ताकि कोई भी बच्चा शिक्षा से वंचित न रह सके। गाँव में ही उसने माँ के नाम पर एक छोटे से स्कूल की नींव रखी और उसे "शकुंतला विद्यालय" का नाम दिया।

हर बार जब वह स्कूल में जाता, तो उसे ऐसा लगता कि उसकी माँ उसके साथ हैं। "माँ की आखिरी चिट्ठी" अब केवल एक चिट्ठी नहीं, बल्कि रवि की जिंदगी का मकसद बन गई थी।

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